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श्री खाटूश्याम बाबा के स्त्रोत...


# श्री वेद व्यासजी द्वारा विरचित इस स्त्रोत्र को आस्था और विश्वास के साथ पाठ से जप-तप के नियमों को पालन करते हुए वर्णित विधि से करने पर श्री बर्बरीकजी(श्री खाटू श्यामजी) की कृपा मिलती है ! 

जय जय चतुरशितिकोटिपरिवार सुर्यवर्चाभिधान यक्षराज
जय भूभारहरणप्रवृत लघुशापप्राप्त नैऋतयोनिसम्भव
जय कामकटंकटाकुक्षि राजहंस
जय घटोत्कचानन्दवर्धन बर्बरीकाभिधान
जय कृष्णोपदिष्ट श्रीगुप्तक्षेत्रदेवीसमाराधन प्राप्तातुलवीर्यं
जय विजयसिद्धिदायक
जय पिंगल रेपलेंद्र दुहद्रुहा नवकोटीश्वर पलाशिदावानल
जय भुपालान्तराले नागकन्या परिहारक
जय श्रीभीममानमर्दन
जय सकलकौरवसेनावधमुहूर्तप्रवृत
जय श्रीकृष्ण वरलब्धसर्ववरप्रदानसामर्थ्य


#  बाबा श्याम जय जय कलिकालवन्दित नमो नमस्ते पाहि पाहिती
 
# " उपरोक्त स्त्रोत्र का हिंदी भावार्थ "
# "हे! चौरासी कोटि परिवार वाले सूर्यवर्चस नाम के धनाध्यक्ष भगवन्! आपकी जय हो, जय हो..."

# "हे! पृथ्वी के भार को हटाने में उत्साही, तथा थोड़े से शाप पाने के कारण राक्षस नाम की देवयोनि में जन्म लेने वाले भगवन्! आपकी जय हो, जय हो..."

# "हे! कामकटंककटा (मोरवी) माता की कोख के राजहंस भगवन्! आपकी जय हो, जय हो..."

# "हे! घटोत्कच पिता के आनंद बढ़ाने वाले बर्बरीक जी के नाम से सुप्रसिद्ध देव! आपकी जय हो, जय हो..."

# "हे! श्री कृष्णजी के उपदेश से श्री गुप्तक्षेत्र में देवियों की आराधना से अतुलित बल पाने वाले भगवन्! आपकी जय हो, जय हो..."

# "हे! विजय विप्र को सिद्धि दिलाने वाले वीर! आपकी जय हो, जय हो..."


# "हे! पिंगला- रेपलेंद्र- दुहद्रुहा तथा नौ कोटि मांसभक्षी पलासी राक्षसों के जंगलरूपी समूह को अग्नि की भांति भस्म करने वाले भगवन्! आपकी जय हो, जय हो..."

# "हे! पृथ्वी और पाताल के बीच रास्ते में नाग कन्याओं का वरण प्रस्ताव ठुकराने वाले माहात्मन्! आपकी जय हो, जय हो..."

# "हे! श्री भीमसेन के मान को मर्दन करने वाले भगवन्! आपकी जय हो, जय हो..."

# "हे! कौरवों की सेना को दो घड़ी ( ४८ मिनट) में नाश कर देने वाले उत्साही महावीर! आपकी जय हो, जय हो..."

# "हे! श्री कृष्ण भगवान के वरदान के द्वारा सब कामनाओं के पूर्ण करने का सामर्थ्य पाने वाले वीरवर! आपकी जय हो, जय हो..."



# "हे! कलिकाल में सर्वत्र पूजित देव! आपको बारम्बार नमस्कार हैं, नमस्कार है, नमस्कार है..."
"हमारी रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये"

# अनेन य: सुहृदयं श्रावणेsभ्य्चर्य दर्शके! वैशाखे च त्रयोदशयां कृष्णपक्षे द्विजोत्मा: शतदीपै पुरिकाभि: संस्तवेत्तस्य तुष्यति
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