
# भगवान शिव के बारे में तो हम सब जानते है ! और हम ये भी जानते है की भगवान शिव के दो नहीं बल्कि तीनआँख है ! पर शायद भगवान शिव की तीसरी आँख के पीछे जो राज है वो बहुत कम लोग जानते है !आज हम आपको शिव जी की तीसरी आँख के राज के बारे में बता रहे है -
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जानिए भगवान शिव की तीसरी आँख के पीछे क्या है राज -
# भगवान शिव त्रिलोचन नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है 3 आंखों वाला होता है !
# भगवान शिव शंकर सृष्टि में एक मात्र है, जिनके त्रि नेत्र है. शास्त्रों के अनुसार शंकर की दो नेत्रों में एक चंद्रमा और दूसरा सूर्य कहा गया है, जो खुलते बंद होते है, जबकि तीसरी आँख को विवेक कहा गया है !

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# भगवान शिव शंकर एक मात्र देव है. जिनको जिनकी आँखों से सत्य कभी नहीं छिप सकता इसलिए शिव को परमब्रह्म कहा जाता है !
# भगवान शिव शंकर की यह तीसरी आँख ज्ञान चक्षु होती है. इसको विवेक यानी बुद्धि का प्रतीक भी कहा जाता है !
# भगवान शिव शंकर की तीसरी आँख तब तक स्थिर रहती है, जब तक उनका मन और विवेक स्थिर शांत रहता है. जैसे ही ज्ञान चक्षु खुलता है, वैसे ही काम जल कर खत्म होता है. इसलिए शंकर के तीसरी आँख खुलने से कामदेव भस्म होते है !
# इसलिए शंकर जी अपनी तीसरी आँख हमेशा ही बंद किये रहते है और यह तीसरी आँख तब खुलती है जब भगवान शंकर के मन में क्रोध की अधिकता होने लगती है और विवेक विचलित होता है, जिसके कारण प्रलय आने लगता है !
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# यह त्रिनेत्र हर मनुष्य को प्राप्त है, जो अत:प्रेरणा के सामान अंदर होता है, जिसको जगाने के लिए कठोर साधन और ज्ञान की जरुरत होती है !

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# वास्तव में यह तीसरी आँख काम, वासना, क्रोध, लोभ, मोह, और अहंकार को काबू में रखती है और आत्मा को जन्म मरण से मुक्त कराती है !
# सांसरिक दृष्टि से कहा जाए तो यह आँख संसार में सही गलत जीवन में आने वाली कठिनाई और समस्याओं से अवगत कराती है और सही रास्ता दिखाती है !
# अपने तीसरे नेत्र की सहायता से हम ज्ञान प्राप्त कर काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार को समाप्त कर सकते है और जीवन मरण के चक्र से खुद को मुक्त कर सकते है !
# वेदों में भगवान शंकर के इस तीसरी आँख को प्रलय कहा गया है. भगवान शिव शंकर के यह त्रिनेत्र त्रिगुण को बताते है पहला दायाँ नेत्र सत्वगुण दूसरा बायाँ नेत्र रजोगुण और मस्तक के ललाट में उपस्थित तीसरा नेत्र को तमोगुण कहा गया है !
# इस तरह यह तीनो नेत्र त्रिकाल का प्रतीक माना जाता है जो भूत, वर्तमान, भविष्य को बताते है. भगवान शिव शंकर के इस त्रिनेत्र को त्रिकाल दृष्टा भी कहते है !
# इन त्रिनेत्रों में त्रिलोक बसा हुआ है त्रिलोक का तात्पर्य पाताल, धरती और आकाश है. इसलिए भगवान शिव शंकर को त्रिलोक स्वामी भी कहा जाता है !
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