# भगवान शिव जी के बारे में तो हम सब जानते है ! पर आप शायद शिव जी के हरितालिका व्रत के बारे में नहीं जानते होगे ! अगर ये व्रत कुंवारी लडकियाँ करती है तो उन को सुयोग्य और मनोनुकूल वर की प्राप्ति होती है -
# हर कुंवारी कन्याओं की चाहत होती है कि उन्हें सुंदर, सुयोग्य और गुणवान पति मिले। पति ऐसा हो जो उन्हें समझे और उनकी भावनाओं का आदर करे ताकि वैवाहिक जीवन में प्रेम और आपसी सामंजस्य बना रहे।लेकिन हर किसी की यह चाहत पूरी नहीं होती उनकी शादी ऐसे व्यक्ति से हो जाती है जिससे अक्सर वैवाहिक जीवन में मतभेद और तनाव बना रहता !
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# इस तरह की समस्याओं से बचने के लिए शास्त्रों और पुराणों में कई व्रत और उपाय बताए गए हैं। इनमें भगवान शिव और पार्वती का एक व्रत बड़ा ही खास है जो हर साल भाद्र शुक्ल तृतीया तिथि के दिन आता है !
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# इस व्रत के विषय में मान्यता है कि जो भी कुंवारी कन्याएं इस दिन व्रत और उपवास रखती है उन्हें सुयोग्य और मनोनुकूल वर की प्राप्ति होती है !
# इस व्रत का नाम है हरितालिका व्रत।इस व्रत के विषय में पुराणों में बताया गया है कि देवी पार्वती ने इस व्रत की शुरुआत की थी। इस संदर्भ में कथा है कि, देवी पार्वती के माता-पिता पार्वती की शादी भगवान विष्णु से करना चाहते थे !
# जबकि पार्वती भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थी। पार्वती ने अपने मन की बात अपनी प्रिय सखियों को बताई। सखियों ने पार्वती को महल से निकालकर वन में पहुंचा दिया। पार्वती के महल में नहीं होने पर इनके पिता हिमालय और माता मैना को लगा कि किसी ने पार्वती का हरण कर लिया है !
# इस व्रत का नाम है हरितालिका व्रत।इस व्रत के विषय में पुराणों में बताया गया है कि देवी पार्वती ने इस व्रत की शुरुआत की थी। इस संदर्भ में कथा है कि, देवी पार्वती के माता-पिता पार्वती की शादी भगवान विष्णु से करना चाहते थे !
# जबकि पार्वती भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थी। पार्वती ने अपने मन की बात अपनी प्रिय सखियों को बताई। सखियों ने पार्वती को महल से निकालकर वन में पहुंचा दिया। पार्वती के महल में नहीं होने पर इनके पिता हिमालय और माता मैना को लगा कि किसी ने पार्वती का हरण कर लिया है !
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# दूसरी ओर पार्वती वन में पहुंचकर एक कंदरा में छुप गयी। भद्रपद शुक्ल पक्ष के दिन पार्वती ने निर्जल और निराहार रहकर भगवान शिव की आराधना की। भगवान शिव पार्वती की श्रद्धा-भक्ति देखकर प्रसन्न हुए और पत्नी रूप में स्वीकार करने का वरदान दिया !
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# दूसरी ओर पार्वती वन में पहुंचकर एक कंदरा में छुप गयी। भद्रपद शुक्ल पक्ष के दिन पार्वती ने निर्जल और निराहार रहकर भगवान शिव की आराधना की। भगवान शिव पार्वती की श्रद्धा-भक्ति देखकर प्रसन्न हुए और पत्नी रूप में स्वीकार करने का वरदान दिया !
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# पार्वती का यह व्रत सखियों द्वारा हरण किये जाने के कारण पूरा हुआ था इसलिए इस व्रत का नाम हरितालिका पड़ा। इस व्रत का नाम हरितालिका होने का एक दूसरा कारण यह भी माना जाता है कि इसमें अन्न-जल का पूरी तरह त्याग किया जाता है। यानी व्रती भूख हड़ताल पर रहते हैं !
# शास्त्रों में इस व्रत का अधिकार सभी स्त्रियों को दिया गया है। शास्त्रों के अनुसार विवाह योग्य कन्याएं इस व्रत से सुयोग्य जीवनसाथी प्राप्त कर सकती हैं। विवाहित स्त्रियों को इस व्रत से अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है !
# इस व्रत से पति की आयु लंबी होती है साथ ही दांपत्य जीवन में आपसी प्रेम बढ़ता है। सुख-समृद्धि में भी इजाफा होता है। भविष्य पुराण में कहा गया है कि हरितालिका तीज के दिन गुड़ का मालपुआ बांटने वाले पर शिव पर पार्वती की अनुपम कृपा होती है !
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