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बलात्कार से कम नहीं टू फिंगर टेस्ट, जानिए क्या होता है टू फिंगर टेस्ट

जब किसी लड़की का बलात्कार होता है तो उसे एक सरकारी अस्पताल में उसे 2-3 दिन बाद सफेद रंग की चादर पर लिटा देते है। फिर अचानक एक नर्स आती है और लड़की की सलवार खोलती है उसकी कमीज को नाभि के ऊपर तक खिसका देती है। इसके थोड़ी देर बाद दो पुरुष डाक्घ्टर आते है और लड़की की जांघों के पास हाथ लगाकर जांच शुरू कर देते है। वहीं लड़की ने बिना कुछ बोले अपने शरीर को कड़ा कर लेती है।
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अचानक दस्घ्ताने पहने हुए हाथों की दो उंगलियां लड़की के वजाइना के अंदर जाती है। वह दर्द से कराह उठती है। डाक्टर कांच की स्लाइड्स पर उंगलियां साफ करके लड़की को वहीं छोड़कर वहां से चले जाते है। जांच से पहले न तो लड़की से किसी तरह की इजाजत ली जाती है और न ही उसे इसके बारे में कुछ बताया जाता है कि उन्होंने ऐसा क्या और क्यों किया। जी हां, इसी को टू फिंगर टेस्ट कहा जाता है। वैसे तो टू फिंगर टेस्ट के लिए कोई कानून नहीं हैं, इसीलिए देशभर में यह बेधड़क जारी है।
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देश में प्रचलित टू फिंगर टेस्ट से बलात्कार पीड़ित महिला की वजाइना के लचीलेपन की जांच की जाती है। अंदर प्रवेश की गई उंगलियों की संख्या से डाक्टर अपनी राय देता है कि ‘महिला सक्रिय सेक्स लाइफ’ में है या नहीं। किसी पर बलात्कार का आरोप लगा देना, उसे सजा दिलाने के लिए काफी नहीं है। बलात्कार हुआ है, यह सिद्ध करना पड़ता है और इसके लिए डाक्टर टू फिंगर टेस्ट करते हैं। यह एक बेहद विवादास्पद परीक्षण है, जिसके तहत महिला की योनी में उंगलियां डालकर अंदरूनी चोटों की जांच की जाती है। यह भी जांचा जाता है कि दुष्कर्म की शिकार महिला संभोग की आदी है या नहीं।
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