जबसे ये ऐलान हुआ है कि लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत भारतीय सेना के नए प्रमुख होंगे तबसे कांग्रेस ने सवालों की झड़ी लगा दी है. बिपिन रावत मौजूदा आर्मी चीफ दलबीर सिंह सुहाग की जगह लेंगे. जनरल बिपिन रावत को 5 वरिष्ठ अधिकारियों में से चुना गया. सभी ईमानदार, दृढ़ निश्चय वाले, सभी ने देश के लिए बहुत कुछ किया. लेकिन विपक्ष को ये बात भी रास नहीं आई. विपक्ष का कहना है कि सरकार ने यह नियुक्ति करके वरिष्ठता को नजरअंदाज किया है. कांग्रेस और विपक्ष को मोदीजी पर सवाल उठाये बिना रोटी हजम नहीं होती है.
कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में सभी भ्रष्ट बना दिया है चाहे वो मीडिया हो, राजनीति हो. यहाँ तक कि सेना को भी. कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा कि “हम प्रधानमंत्री मोदी से पूछना चाहते है कि थलसेना प्रमुख की नियुक्ति पर वरिष्ठता का सम्मान क्यों नहीं किया गया? लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीण बख्शी और लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद अली हारीज को सैन्य प्रमुख क्यों नहीं बनाया गया?”
जो कांग्रेस आज इस फैसले पर सवाल उठा रही वो खुद हर कार्यकाल में अपने तरीके से सरकार को चलाती थी. 1972 में इंदिरा गांधी ने लेफ्टिनेंट जनरल पीएस भगत की वरिष्ठता का ख्याल नहीं रखते हुए जी.जी. बेवूर को सेना प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी थी. 1983 में इंदिरा गांधी ने ले. जनरल सिन्हा की वरिष्ठता का ख्याल नहीं रखते हुए ले. जनरल ए. एस वैद्य को सेना प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी थी. इंदिरा गाँधी ने 1984 में सिन्हा को स्वर्ण मंदिर में धावा बोलने के लिए कहा था जिसके चलते सरकार और सेना के बीच टकराव होने लगी. एसके सिन्हा ए. एस वैद्य की नियुक्ति से इतने आहत हुए कि उन्होंने इंदिरा गांधी के फैसले से नाराजगी जताते हुए अपने पद से इस्तीफा तक दे दिया था.
1988 में वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल को ससपेंड कर दिया गया था. फिर वीपी सिंह की सरकार ने टोनी जैन को हटाकर जूनियर अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण रामदास को नियुक्त किया गया.
कांग्रेस जल्दी बाजी में मोदी सरकार के फैसलों पर सवाल उठाना शुरू कर देती. वो अपने काले करतूतों को भूल जाती है. कांग्रेस सरकार भूल जाती है वो अब उनकी सरकार नहीं है मोदी सरकार है वो सिर्फ विपक्ष है. कांग्रेस ने भारत के संविधान का कभी सम्मान नहीं किया. कांग्रेस ने जितना इस देश में भ्रष्टाचार फैलाया है उतना आज तक किसी सरकार ने नहीं फैलाया.
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