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जानिये सूर्यदेव के बारे में कुछ विशेष बाते !!

  • जब ब्रह्माजी का जन्म हुआ, तन उनके मुख से ॐ महाशब्द का उच्चारण हुआ. तभी से यह ओंकार परब्रह्म है और यही भगवान सूर्यदेव का शरीर है.
  • सूर्यदेव की उत्पत्ति ब्रह्माजी के चारों मुख और ओंकार के तेज से मिलकर हुई.
  • सूर्यदेव का यह स्वरुप सृष्टि में सबसे पहले प्रकट हुआ इसलिए इसका नाम आदित्य पड़ा.
  • सूर्यदेव का दूसरा नाम सविता है. इसका अर्थ है सृष्टि करने वाला. इन्होने ही जगत सृष्टि का निर्माण किया है. ये सनातन परमात्मा हैं.
  • नवग्रहों में सूर्यदेव सबसे प्रमुख माने जाते है.
  • सूर्यदेव की दो भुजाएं है और इनकी दोनों भुजाओं में कमल सुशोभित हैं. कमल के आसन पर ही ये विराजमान है.
  • सूर्यदेव का वर्ण लाल है. इनके रथ पर सात घोड़े है और इनके रथ में एक ही चक्र है, जो संवत्सर कहलाता है.
  • इस रथ में बारह अरे हैं जो बारह महीनों के प्रतीक हैं. ऋतुरूप छ: नेमियां और चौमासे को इंगित करती तीन नाभियां हैं. चक्र, शक्ति, पाश और अंकुश इनके मुख्य अस्त्र हैं.
  • सूर्यदेव को सिंह राशि के स्वामी कहा जाता है. इनकी महादशा छ: वर्ष की होती है. इनको प्रसन्न करने के लिए इन्हें रोज सूर्यार्घ्य देना चाहिए. इनका सामान्य मंत्र है-ॐ घृणिं  सूर्याय नम:’. इस मंत्र की रोज जाप करनी चाहिए.
  • एक बार दैत्यों ने देवताओं को पराजित कर उनके सारे अधिकार छीन लिए. तब देवमाता अदिति ने इस विपत्ति से मुक्ति पाने के लिये भगवान सूर्य की उपासना की, जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने अदिति के गर्भ से अवतार लिया और दैत्यों को पराजित कर सनातन वेदमार्ग की स्थापना की. इसलिए भी इनका दूसरा नाम आदित्य है.
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