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गांधी जी ने "चरखे" से कैसे बनाई दुनिया में भारत की पहचान....


नई दिल्ली। भारत में चरखे का इतिहास बहुत पुराना है। साल 1908 में गांधी जी के मन में चरखे को देशव्यापी पहचान दिलवाने का ख्याल आया। स्वदेशी आंदोलन के दौरान चरखा हर घर में लोकप्रिय हो गया और फिर वक्त के साथ चरखा भारत की पहचान बन गया।
जानकारों का कहना है कि आज़ादी के बाद चरखा वक्त के साथ पीछे छूटता चला गया। हालांकि अब गांधी जी के चरखे की लुप्त होती लोकप्रियता का पुनर्जन्म हो रहा है क्योंकि अब गांधी जी का चरखा सोलर अवतार ले चुका है। हाथ से चलने वाले चरखे से एक दिन में औसतन 30 से 32 Hanks सूत तैयार किया जा सकता है।एक Hank का मतलब एक हजार मीटर धागा होता है।
खादी ग्रामोद्योग की तरफ से चरखा चलाने वाले को एक Hank सूत की कताई करने पर 4 रुपये दिये जाते हैं। इस हिसाब से हाथ से चरखा चलाने वाले लोगों की एक दिन की कमाई औसतन सौ से सवा सौ रुपये तक ही होती है।
सोलर चरखा सूत तैयार करने वाले परिवारों की ज़िंदगी बदल सकता है क्योंकि एक सोलर चरखे से एक दिन में सौ से सवा सौ Hanks सूत का धागा तैयार किया जा सकता है। यानी सोलर चरखा चलाने वाले परिवार की एक दिन की आमदनी 400 से 500 रुपये तक हो सकती है। इस चरखे में सोलर पैनल के अलावा बैटरी भी लगी होती है जो सूरज की रोशनी से ही चार्ज होती है यानी रात के वक्त भी सोलर चरखा कई घंटों तक काम कर सकता है।
सोलर चरखा देश में सूत का धागा तैयार करने वाले साढ़े 12 लाख लोगों की ज़िंदगी में क्रांतिकारी बदलाव लाने की ताकत रखता है। दिलचस्प पहलू ये भी है कि सोलर चरखे से तैयार सूत से बना कपड़ा खादी नहीं कहला सकता। 
Khadi and Village Industries Commission Act, 1965 का Section 2(d) कहता है कि सिर्फ हाथ से चलने वाले चरखे से बने सूत से तैयार कपड़े को ही खादी कहा जा सकता है। अगर सोलर चरखे से तैयार सूत और कपड़े को खादी की श्रेणी में रखना है तो मौज़ूदा कानून में संशोधन करना होगा। आज़ादी के बाद भारत के राष्ट्रीय ध्वज में चरखे की जगह अशोक चक्र को चुनने से महात्मा गाँधी नाराज़ हो गये थे। 
6 अगस्त 1947 को गांधी जी ने अपनी नाराजगी ये कहकर जताई थी कि भारत के राष्ट्रध्वज में चरखा नहीं हुआ तो वो उसे सलामी नहीं देंगे। गांधी जी का तर्क था कि चक्र अशोक की लाट से चुना है और यह हिंसा को दर्शाता है और उन्होंने आजादी की सम्पूर्ण लड़ाई अहिंसा के सिद्धांत पर लड़ी है।जवाहर लाल नेहरु और सरदार पटेल ने गांधी जी को तिरंगे में चक्र को विकास का प्रतीक बताया। 
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