आम तौर पर दो पक्षों को आपस में ही समझौता करने को वो कहता है
जब वो खुद सक्षम नहीं होता की वो मामले को निपटा सके, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य जज ने भी कल बेहद निराशावादी टिपण्णी की है
सुप्रीम कोर्ट में जब क्षमता ही नहीं है, की वो फैसला कर सके तो सुप्रीम कोर्ट की जरुरत ही क्या है
टैक्स देने वाले लोगों के पैसे से सुप्रीम कोर्ट चलाई ही क्यों जा रही है, और इतनी मोटी तनख्वाह जजों को दी ही क्यों जा रही है, ये अपने आप में सवालिया निशान है
इलाहबाद हाई कोर्ट ने साबित कर दिया है की, मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनी, इसके बाद भी सुप्रीम कोर्ट मामले को लंबा खींच रहा है, साफ़ होता है की, सुप्रीम कोर्ट किसी से डरा हुआ है
और इसी कारण खुद फैसला नहीं देना चाहता
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लोग भी अब सवाल उठा रहे है, और ये लाजमी भी है, क्योंकि यही सुप्रीम कोर्ट दही हांड़ी, जलीकट्टू इत्यादि पर तो फाटक से फैसले करता है, पर ट्रिपल तलाक, यूनिफार्म सिविल कोड, बकरीद इत्यादि पर
इस सुप्रीम कोर्ट से फैसले ही नहीं हो पाते
कानून और संविधान का मजाक बना हुआ है, भारत में और इसे ठीक करने की खासी जरुरत है
अब आपस में फैसला करना है लोगो को तो टैक्स देने वालो के पैसे को बर्बाद कर कोर्ट क्यों खुले हुए है
हाई कोर्ट के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट में बस सुनवाई होनी है पर 3 साल से 1 भी बार सुनवाई नहीं हुई है
उस जगह आज भी मंदिर मौजूद है, खुद जज जाकर आँख से देख सकते है, मंदिर के अवशेष खुदाई के दौरान आर्किलोजिकल डिपार्टमेंट को मिले है, सबूत होने के बाबजूद कोर्ट मंदिर को लटका रही है
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