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गर्भवती महिला ने मोदी को लिखी चिट्ठी, मैंने आपको वोट दिया है, 'तीन तलाक' से दिलाएं आजादी

गर्भवती महिला ने मोदी को लिखी चिट्ठी, मैंने आपको वोट दिया है, 'तीन तलाक' से दिलाएं आजादी

लखनऊ: 'तीन तलाक' की पीड़ित शगुफ्ता शाह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस शैतानी इस्लामिक परंपरा को जल्द से जल्द खत्म करने को कहा है. लखनऊ की रहने वाली शगुफ्ता दो बच्चों की मां हैं.

बुधवार को मिली रिपोर्ट के मुताबिक अपने पति द्वारा अपमानित होने के बाद शगुफ्ता शाह ने खुद पर गुजरी तकलीफों को बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखने का फैसला किया. शगुफ्ता के पति ने उससे तीसरे बच्चे को पेट में ही गिराने (गर्भपात) की बात कही थी.

पत्र में शाह ने बताया कि अपने दर्द को बयां किया है कि किस तरह से वह तीसरी बार गर्भवती हुई और कैसे उसके पति शमशाद सईद ने उसे गर्भपात कराने को कहा क्योंकि उसे (शमशाद को) डर था कि तीसरी बार भी लड़की ही जन्म लेगी.

शगुफ्ता ने पति की बात मानने से इंकार करते हुए बच्चा गिराने से मना कर दिया. जिसके बाद उसके पति ने उसे बुरी तरह से पीटा और 'तीन तलाक' कहने के बाद सड़क किनारे मरने के लिए छोड़ दिया. मूल रूप से सहारनपुर रहने वाली महिला को पुलिस से थोड़ी मदद मिली और उसने फैसला किया कि इस मामले में वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दखल देने को कहेंगी.

शगुफ्ता शाह ने कहा, 'मैंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर उनसे 'तीन तलाक' को खत्म करने का निवेदन किया है. मैंने उनको वोट दिया है और मैं आशा करती हूं कि अब मुझे न्याय मिलेगा.' शगुफ्ता ने बताया कि उसे इसकी प्रेरणा सहारनपुर की निवासी और मित्र अतिया साबरी से मिली.

उसने बाद में पत्र में लिखा, 'मिस्टर प्रधानमंत्री, यह मेरी विनती है कि कृपया इस गरीब और असहाय महिला की मदद करें. मैं आपसे यह भी निवेदन करती हूं कि आप इस बात को आश्वस्त करें कि 'तीन तलाक' जैसी शैतानी इस्लामिक परंपरा खत्म हो, ताकि मुझ जैसी और अन्य पीड़ितों को न्याय मिल सके और हम एक सम्मानित जीवन जी सकें.'

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने आज उच्चतम न्यायालय से कहा कि मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक, ‘निकाह हलाला’ और बहुविवाह की प्रथाओं को चुनौती देने वाली याचिकाएं विचारयोग्य नहीं हैं क्योंकि ये मुद्दे न्यायपालिका के दायरे में नहीं आते हैं. 

बोर्ड ने कहा कि इस्लामी कानून, जिसकी बुनियाद अनिवार्य तौर पर पवित्र कुरान एवं उस पर आधारित सूत्रों पर पड़ी है, की वैधता संविधान के खास प्रावधानों पर परखी नहीं जा सकती है. इनकी संवैधानिक व्याख्या जबतक अपरिहार्य न हो जाए, तबतक उसकी दिशा में आगे बढ़ने से न्यायिक संयम बरतने की जरूरत है.

उसने कहा कि याचिकाओं में उठाये गये मुद्दे विधायी दायरे में आते हैं, और चूंकि तलाक निजी प्रकृति का मुद्दा है अतएव उसे मौलिक अधिकारों के तहत लाकर लागू नहीं किया जा सकता. बोर्ड ने दावा किया कि याचिकाएं गलत समझ के चलते दायर की गयी हैं और यह चुनौती मुस्लिम पर्सनल कानून की गलत समझ पर आधारित है, संविधान हर धार्मिक वर्ग को धर्म के मामलों में अपनी चीजें खुद संभालने की इजाजत देता है.
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