शेर पर सवार स्कंद माता का वाहन मयूर भी है। इनकी पूजा केसर युक्त चंदन व सफेद वस्त्र से करते हैं। विभिन्न आभूषणों के अलंकार चढ़ाने से मां प्रसन्न होती हैं। लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
दुष्टों को दंडित करने के लिए बनीं ओंकार
शास्त्रीय अर्थ में तो नवदुर्गा की स्कंद माता रूप को सभी जानते हैं। यह भी जानते हैं कि देवासुर संग्राम में भगवान स्कंद अर्थात कुमार कार्तिकेय ही देवताओं के सेनापति बने थे, किंतु वर्तमान अर्थ यह है कि मां के द्वारा किया गया पालन-पोषण और दिया गया संस्कार ही संतान को सुख-सुकून- सामर्थ्य प्रदान करता है।
मां का आशीर्वाद संतान के लिए सुरक्षा कवच होती है, प्रगति का पर्याय भी और उज्ज्वल भविष्य का आधार भी। अत: संतान को अपनी मां का सदैव सम्मान व सेवा करनी चाहिए। वृद्ध मां को वरिष्ठ नागरिक समझकर उन्हें वृद्धाश्रम भेजने की जगह अपने घर में ही देखभाल करें, ठीक वैसे ही जैसे मां पार्वती (दुर्गा) ने स्कंद (कार्तिकेय) की देखभाल की थी।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि नवदुर्गा ही पंचम रूप में स्कंदमाता हैं लेकिन देवी स्कंदतिका के कार्य भी इन्हें करने पड़े। इसकी वजह से ये भक्तों की त्राता कहलाईं। सरलता की दृष्टि से यह है कि स्कंदमाता 'आकार' हैं। किंतु दुष्टों को दंडित करने के लिए स्कंदतिका 'ओंकार' बनीं।
स्कंदमाता के रूप में देवी अपने भक्तों की रक्षा करती हैं लेकिन स्कंदतिका होकर दैत्यों (वैप्रचित दैत्य) को अपने दांतों से काटकर मार देती हैं। आशय यह है कि मां अपनी संतान की रक्षा के लिए नाराज होकर दांतों को भी शस्त्र बनाकर काट लेती हैं।
मंत्र
सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया।शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्सिंहारूढाचतुर्भुजास्कन्धमातायशस्वनीम्॥
धवलवर्णाविशुद्ध चक्रस्थितांपंचम दुर्गा त्रिनेत्राम
अभय पदमयुग्म करांदक्षिण उरूपुत्रधरामभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानाकृदुहज्ञसयानानालंकारभूषिताम्
मंजीर हार केयूर किंकिणिरत्नकुण्डलधारिणीम।।
प्रभुल्लवंदनापल्लवाधरांकांत कपोलांपीन पयोधराम्
कमनीयांलावण्यांजारूत्रिवलींनितम्बनीम्॥
स्तोत्र मंत्र
नमामि स्कन्धमातास्कन्धधारिणीम्समग्रतत्वसागरमपारपारगहराम्॥
शिप्रभांसमुल्वलांस्फुरच्छशागशेखराम्
ललाटरत्नभास्कराजगतप्रदीप्तभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपाíचतांसनत्कुमारसंस्तुताम्
सुरासेरेन्द्रवन्दितांयथार्थनिर्मलादभुताम्॥
मुमुक्षुभिíवचिन्तितांविशेषतत्वमूचिताम्
नानालंकारभूषितांकृगेन्द्रवाहनाग्रताम्।।
सुशुद्धतत्वातोषणांत्रिवेदमारभषणाम्
सुधाíमककौपकारिणीसुरेन्द्रवैरिघातिनीम्॥
शुभांपुष्पमालिनीसुवर्णकल्पशाखिनीम्
तमोअन्कारयामिनीशिवस्वभावकामिनीम्॥
सहस्त्रसूर्यराजिकांधनज्जयोग्रकारिकाम्
सुशुद्धकाल कन्दलांसुभृडकृन्दमज्जुलाम्॥
प्रजायिनीप्रजावती नमामिमातरंसतीम्
स्वकर्मधारणेगतिंहरिप्रयच्छपार्वतीम्॥
इनन्तशक्तिकान्तिदांयशोथमुक्तिदाम्
पुन: पुनर्जगद्धितांनमाम्यहंसुरार्चिताम॥
जयेश्वरित्रिलाचनेप्रसीददेवि पाहिमाम्॥
कवच मंत्र
ऐं बीजालिंकादेवी पदयुग्मधरापराहृदयंपातुसा देवी कातिकययुता॥
श्रींहीं हुं ऐं देवी पूर्वस्यांपातुसर्वदा
सर्वाग में सदा पातुस्कन्धमातापुत्रप्रदा॥
वाणवाणामृतेहुं फट् बीज समन्विता
उत्तरस्यातथाग्नेचवारूणेनेत्रतेअवतु॥
इन्द्राणी भैरवी चैवासितांगीचसंहारिणी
सर्वदापातुमां देवी चान्यान्यासुहि दिक्षवै॥
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