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कोई कुछ भी कहे, पर कांग्रेसी नेता गुलाम मानसिकता के होते है, एक परिवार की गुलामी करते है


राहुल गांधी 46 बरस के हो गए हैं, लेकिन उनका सीवी बनाया जाए तो योग्यता में लिखने को कुछ नहीं मिलेगा। सिवाय इसके कि उन्होंने देश की सबसे बड़ी पार्टी को बर्बाद करके रख दिया है 😂 अगर यह एक उनका मिशन था तो उन्होंने इसे शानदार तरीके से पूरा किया है। किसी भी नेता के मुकाबले राहुल के खाते में सबसे ज्यादा हार दर्ज हैं। 

इस बार भी उत्तर प्रदेश में मिली करारी हार के बाद वो अपने चिर-परिचित अंदाज में गायब हो चुके हैं 😋 कहीं दिख ही नहीं रहे हैं जनाब। वहीं उनके साझेदार अखिलेश यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके पूरी विनम्रता से हार स्वीकार की। उन्होंने राहुल की पार्टी को हार का जिम्मेदार मानने से इनकार कर दिया, जो गठबंधन में सौ से ज्यादा सीटों पर लड़ने के लिए अड़ी हुई थी, लेकिन 7 ही जीत सकी। इस चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया । पर एक सोचने वाली बात यह थी कि क्या हार के बाद राहुल अखिलेश के बगल में बैठे थे? जवाब है नहीं..।

उन्होंने एक बार फिर नौ-दो ग्यारह हो जाने वाला खेल दिखाया। उनके पार्टी नेताओं को विपत्ति में विदेश भाग जाने की आदत है, लेकिन इस बार वो विदेश नहीं गए हैं। वो यहीं हैं, लेकिन अकेलेपन में चले गए हैं और ज्यादा कुछ नहीं बोल रहे 😂

नेताओं के बारे में इस बात से भी राय बनाई जा सकती है कि वो अपने कार्यकर्ताओं से कैसा बर्ताव करते हैं। अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव दोनों ने ही भयंकर हार झेली है। लेकिन वो अपने कार्यकर्ताओं के कंधों पर सांत्वना का हाथ रखने और मीडिया के मुश्किल सवाल झेलने के लिए हमेशा मौजूद रहे। राजनीति चौबीस घंटे डटे रहने वाली जॉब है। आप राहुल के अंदाज में यदा-कदा नेतागिरी नहीं कर सकते, जो अचानक बड़े जोश में प्रकट होते हैं, फिर महीनों तक सुस्त पड़े रहते हैं।

राहुल ने मनमोहन सिंह की कैबिनेट में काम करने से मना कर दिया था, जहां वो बहुत कुछ सीख सकते थे। राहुल ने कहा था कि वो यूपी का सीएम बनना चाहते हैं। लेकिन जब वक्त आने पर प्रशांत किशोर ने उन्हें सीएम कैंडिडेट बनने की सलाह दी तो वो पीछे हट गए।

पार्लियामेंट में भी उनका रिकॉर्ड कुछ अच्छा नहीं है। उनके पास गांधी खानदान की विरासत के अलावा कोई उपलब्धि नहीं है। इस बार तो बीजेपी ने कांग्रेस की मुट्ठी में दबी अमेठी और रायबरेली की सीटें भी सरका लीं। तो किस बिनाह पर राहुल अपनी ये यूपी-सीएम वाली ‘महत्वाकांक्षा’ पूरी करेंगे?

सोनिया गांधी अपनी रहस्यमयी बीमारी के इलाज के लिए विदेश में हैं। पार्टी में किसी को कांग्रेस की फिक्र नहीं है। गोवा और मणिपुर में सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद भी उन्होंने हार को गले लगा लिया है। कांग्रेस नेता हाईकमान की गैरमौजूदगी में बैठकें करते रहते हैं। और भाजपा उन्हें पटखनी देने की इच्छाशक्ति के साथ मौजूद रहती है।

राहुल गांधी को लोग कायदे से तो पॉलीटिशियन समझते ही नहीं। 2009 के लोकसभा चुनाव को छोड़ दें तो राहुल ने अब तक कांग्रेस के लिए एक भी सीट नहीं जीती। कांग्रेस का सर्वेसर्वा गांधी परिवार ही बना रहा क्योंकि परिवार के लोग पार्टी के लिए वोट लाते रहे। 

लेकिन राहुल इस मामले में भी हाथ से जाते रहे हैं। राहुल लगातार आत्मघाती निर्णय लेते रहे हैं..इस बात का अंदाजा आप इससे भी लगा सकते हैं कि गोवा के कई विधायक राहुल पर गुस्सा उतारते हुए कहते हैं कि पार्टी लीडरशिप ने उन सबका और जनादेश का मजाक बना दिया है। अब लीजिए..और भी कुछ सुनना बाकी था ?

राहुल के खिलाफ गोवा के विधायकों में वही गुस्सा है जैसा असम के पूर्व कांग्रेसी नेता हेमंत बिस्वा सरमा में दिखाई देती है। सरमा ने कांग्रेस छोड़ दी क्योंकि राहुल ने उनसे ज्यादा अपने कुत्ते को अटेंशन दिया और इस तरह कांग्रेस में अपनी हार तय कर ली। सरमा बीजेपी में चले गए, वहां बीजेपी को जिताया और अब मणिपुर में बीजेपी सरकार बनवाने में अहम रोल निभा रहे हैं।

लेकिन कांंग्रेस को सरमा के चले जाने की फिक्र भी थी। कुछ पार्टी वर्कर्स के मुताबिक, ‘राहुल का कुत्ता था ही इतना क्यूट कि सरमा उसके सामने कुछ नहीं थे.’

कांग्रेस में कद्दावर नेताओं से ऐसा ही बर्ताव किया जा रहा है। अगर राहुल को जानवरों से इतना ही प्यार है तो उनको एक पेट-शॉप खोल लेनी चाहिए। छोड़ दें राजनीति, नहीं हो पा रहा तो। क्यों एक जरूरी बड़ी पार्टी की भद्द पीट रहे हैं। कांग्रेस में बहुत से काबिल नेता हैं जो पार्टी को बहुत अच्छे से चला सकते हैं। सोनिया और राहुल को मेंटर बन जाना चाहिए और काबिल लोगों को मौका देना चाहिए। राहुल के चक्कर में पॉलीटिशियन की एक पूरी पीढ़ी हाशिए पर जा रही है।

राहुल गांधी रहस्यमयी ढंग से हर बार गलत लोग चुनते हैं.. संजय निरुपम जो मुंबई में हर बार हार रहे हैं, उनको जाने क्यों वो ज्यादा भाव देते हैं। इसी तरह चुनावों के मद्देनजर गुजरात जैसे जरूरी राज्य में पहले बीजेपी से भागकर आए एसएस वघेला को नेता बनाना भी समझ से परे है। 

वहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे बड़े नेता जिन्होंने पंजाब में कांग्रेस को जीत दिलाई, उनको राहुल पसंंद नहीं करते। कांग्रेसी नेता संदीप दीक्षित ने खुलेआम कहा कि राहुल गांधी मास लीडर नहीं हैं। लेकिन जब राहुल के इस्तीफे के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘मैं राहुल गांधी नहीं हूं'।

तो इस तरह राहुल गांधी, अनजाने में ही मोदी का सबसे बड़ा हथियार बनते जा रहे हैं। मेरी मानिये साहब, इससे पहले कि कांग्रेस पार्टी में विद्रोह हो जाए, राहुल गांधी को इस्तीफा दे देना चाहिए। भारत को एक मजबूत विपक्ष और राहुल गांधी के इस्तीफे की जरूरत है।

वक्त आ गया है कि अब राहुल गांधी अपने दिल की सुनें, मैराथन साइकलिंग करें..न कि किसी और की ‘साइकिल’ पंक्चर कर दें।..बाकी तो जो है,वो है हीं । शादी वादी होने से रही, अब बस वैरागी बन जाएं..भगवान् से यही कामना है 😂
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