प्रशांत भूषण, कविता कृष्णन, बरखा दत्त, राजदीप सरदेसाई, सागरिका घोसे
ऐसे तमाम नाम, पर सबका एक ही काम
भारत और अपनी ही संस्कृति को गालियां देना, विदेश में बैठे अपने मालिकों को खुश करना
ऐसे लोगों को हम सेक्युलर और वामपंथी तत्व कहते है
प्रशांत भूषण एक काल्पनिक पात्र रोमियों, जी हां रोमियों एक काल्पनिक किताबी पात्र ही है
प्रशांत भूषण ने रोमियों के बचाव में अपनी ही संस्कृति को गालियां दी, बता दें की भगवान् कृष्ण ने कभी छेड़छाड़ नहीं की, वो 11 साल की उम्र में ही वृन्दावन से मथुरा चले गए, कंस वध किया और फिर वहीँ रह गए, फिर वहां से द्वारका इत्यादि
यानि वृन्दावन में 11 साल से छोटा बालक हंसी ठिठोली करता था, उसे प्रशांत भूषण जैसे लोग छेड़छाड़ कहते है
प्रशांत भूषण जैसे लोग आखिर होते कौन है
अगर आप इन तमाम सेक्युलरों की कुंडली निकालेंगे तो एक चीज बहुत सामान्य होगी
ये तमाम लोग कान्वेंट स्कूलों से पढ़े होते है, इसे मिशनरी स्कूलों से पढ़े होते है, ये तमाम स्कूलों में हिन्दू माँ बाप अपने बच्चों को भेजते है, और ये तमाम स्कुल बच्चों को हिन्दू धर्म से नफरत करना ही सिखाते है, धीरे धीरे एक बच्चा ऐसा सेक्युलर और वामपंथी बनता है की
रोमियों के बचाव में अपनी ही संस्कृति को गाली देना महानता समझता है
और देश के जितने सेक्युलर वामपंथी है उनमे से अधिकतर की यही कुंडली है, और बाकि जो अन्य वामपंथी है
उनको इन कान्वेंट वाले वामपंथियों ने कॉलेज के संगत से वामपंथी बना दिया होता है
कुल मिलाकर जब हिन्दू माँ बाप अपने बच्चों की परवरिश ठीक से नहीं करते
तो प्रशांत भूषण जैसे गंदे लोग समाज को गन्दा करने के लिए समाज के खिलाफ ही जहर उगलते रहते है
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