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महिलाओं को ही क्यों गुजरना पड़ता है लिंग परीक्षण की पीड़ा से?

क्या आपको शांति सुन्दरराजन (Shanti Sundararajan) का नाम याद है? हाँ वही, जिसने 2006 के दोहा एशियाई खेलों (Doha Asian Games) में 800 मीटर की दौड़ का रजत पदक जीता था। लेकिन शांति सुंदरराजन का नाम सिर्फ इसलिए ही नहीं जाना जाता है, उसका नाम इतिहास में इसलिए भी दर्ज है कि ऐशियाई खेलों की चयन समिति को उसके पुरूष होने के संदेह के कारण उसका लिंग परीक्षण (Sex Test) किया गया था, जिसमें असफल होने के कारण उसका पदक छीन लिया गया था।

शांति सुंदरराजन को याद करने की वजह?
सवाल जायज है क्योंकि इस घटना को बीते हुए काफी अर्सा बीत गया है। लेकिन हाल ही में एक ऐसी घटना फिर घटित हुई है, जिसकी वजह से पुराना जख्म फिर से हरा हो गया है। हुआ यूँ है कि हाल ही में दक्षिण अफ्रीका की महिला एथलीट कैस्टर सेमेन्या (Caster Semenya) ने इसी प्रकार का एक मामला जीत लिया है। बताते चलें कि कैस्टर सेमेन्या ने 2009 की विश्व चैम्पियनशिप (World Championship) में 800 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता था, लेकिन लिंग परीक्षण में असफल होने के कारण उसका पदक शांति की तरह छीन लिया गया था। लेकिन बात यहीं पर आकर खत्म नहीं हुई थी। लिंग परीक्षण में असफल होने के बावजूद उसके देश ने कैस्टर सेमेन्या का साथ नहीं छोड़ा था और उसकी लड़ाई को लड़ता रहा था और उसने इस मामले को जीत कर ही दम लिया। (लेकिन दुर्भाग्यवश हमारे देश के खेल आकाओं ने शांति का साथ नहीं दिया, अन्यथा शायद वह भी अपना पदक वापस पाने में सफल रहती।)

आखिर यह लिंग परीक्षण कौन सी बला है?
लिंग परीक्षण क्या है, यह जानने से पहले, यह जानना जरूरी है कि आखिर इसकी जरूरत क्यों पड़ती है। दरअसल इसका मुख्य कारण है पुरूष और महिला के सेक्सक्रोमोजोम में विविधता। यह एक सामान्य सी बात है कि महिलाओं के शरीर में एक्स0एक्स0 (XX) प्रकार का सेक्स क्रोमोज़ोम पाया जाता है, जबकि पुरूषों के सेक्स क्रोमोज़ोम एक्स0वाई0 (XY) प्रकार के होते हैं। गर्भधारण के दौरान अगर पुरूष का वाई क्रोमोसोम महिला के एक्स क्रोमोसोम से मिलन करने में सफल होता है, तो पैदा होने वाली संतान लड़का होता है, लेकिन यदि इस क्रिया में पुरूष का एक्स क्रोमोसोम बाजी मार लेता है, तो लड़की का जन्म होता है। यह लड़के और लड़की के जन्म की सामान्य प्रक्रिया है।

लेकिन कभी-कभी मामला इससे एकदम उलट भी हो जाता है। कभी-कभी होता यूँ है कि स्त्री के दो एक्स क्रोमोसोम पुरूष के वाई क्रोमोसोम से क्रिया करने में सफल  हो जाते हैं। ऐसी दशा में बनने वाले भ्रूण में महिला के साथ-साथ पुरूष के भी लक्षण उभर आते हैं। जैसे किसी स्त्री के वाह्य अंग पुरूष जैसे हों अथवा किसी पुरूष के वाह्य अंग स्त्री जैसे हो जाएँ।

पुरूष जैसी स्त्री अथवा स्त्री जैसे पुरूष से क्या फर्क पड़ता है?
लिंग परीक्षण के जितने भी मामले सामने आए हैं, उसमें जाँच के दायरे में सिर्फ महिलाएँ ही आती हैं। इसका कारण यह है कि पुरूष और महिला की शारीरिक बनावट में फर्क होने के कारण शारीरिक दमखम के मामले में महिलाएँ पुरूषों से कमजोर होती हैं। समस्त खेल स्पर्धाओं के रिकार्ड इसके गवाह हैं। इसी कारण जिन महिलाओं में पुरूषों के भी लक्षण विकसित हो जाते हैं, उनके पुरूष होने की आशंका के कारण उनका लिंग परीक्षण कराया जाता है। यही कारण है कि विश्व खेलों के इतिहास में सिर्फ महिलाएँ ही लिंग परीक्षण का शिकार होती हैं।

कब शुरू हुआ खिलाड़ियों का लिंग परीक्षण?
यह प्रकरण लगभग 40 वर्ष पुराना है। उस समय रूसी बालाएँ अन्तर्राष्ट्रीय खेलों में हावी थीं। उनमें से कुछ खिलाड़ी, जिनके चेहरे-मोहरे पुरूषोचित थे और जिन्होंने पदक जीतने के बाद आपरेशन कराकर अपना लिंग परिवर्तित करवा लिया, यह मामला प्रकाश में आया। इस तरह की घटनाओं को देखकर लिंग परीक्षण का प्राविधान अपनाया गया। लिंग परीक्षण में खिलाड़ियों के ब्लड टेस्ट (Blood Test), सेक्स हार्मोन (Sex Hormones), जींस (Gene) और क्रोमोज़ोम (Chromosome) के परीक्षण किए जाते हैं और उससे प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर यह तय किया जाता है कि सम्बंधित खिलाड़ी को महिला माना जाए अथवा पुरूष।

चूंकि यह परीक्षण सिर्फ महिलाओं से जुड़े हैं, इसलिए इन्हें अपमानजनक भी माना जाता रहा है। लेकिन इस तरह के परीक्षणों की वैज्ञानिकता प्रामाणिकता सदैव संदेह के दायरे में रही है। इसी का फायदा उठाकर दक्षिण अफ्रीका ने कैस्टर सेमेन्या के हक की लड़ाई लड़ी और वह उसमें कामयाब रहा। काश, अगर भारत के खेल अधिकारियों ने भी शांति सुंदरराजन का मामला गम्भीरता से लिया होता, तो शायद प्राकृतिक गड़बड़ी की सजा शांति सुंदरराजन को न मिली होती।

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