
ऐसा आमतौर पर उन ट्रैक्टरों के साथ होता है जिनके पिछले पहिए इंजन से जुड़े होते हैं। अगले पहिए सिर्फ दिशा देने (स्टीयरिंग) का काम करते हैं। भारी पहियों को मोड़ने के लिए ज्यादा ताकत की जरूरत होगी।
टू ह्वील ड्राइव में पिछले पहिए चलायमान होते हैं। चूंकि ट्रैक्टर को ऊबड़-खाबड़ जमीन पर चलना होता है इसलिए उसके चलायमान पहिए बड़े टायरों वाले होते हैं। फोर ह्वील ड्राइव ट्रैक्टर भी होते हैं, जिनके चारों पहिए बराबर साइज के होते हैं।
इस स्थिति में स्टीयरिंग फ्रंट ह्वील से नहीं होती बल्कि आगे और पीछे के पहियों के बीच में एक जोड़ इस तरह का लगाया जाता है जिससे ट्रैक्टर को दिशा दी जा सके यानी स्टीयर किया जा सके।
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