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देखिये : घने जंगलों के बीच कुछ ऐसी थी इनकी लाइफ कोलंबिया के ‘नक्सली’ कहा जाता था इन्हें...


नई दिल्ली। पिछले साल हुए कोलंबिया की सरकार और फार्क विद्रोहियों के बीच शांति समझौते से यहां करीब 50 सालों से चला आ रहा खून-खराबा बंद हो गया है। अब तक करीब 6000 विद्रोहियों ने हथियार डाल दिए हैं और अब नॉर्मल लाइफ जीने के लिए जंगलों से अपने घर पहुंच रहे हैं। सरकार इनके जीवन-यापन के लिए आर्थिक मदद भी कर रही है।

कोलंबिया के ‘नक्सली’ कहा जाता था इन्हें...
जिस तरह हमारा देश नक्सलवाद से परेशान है, ठीक ऐसी ही हालत कोलंबिया की भी थी। यहां सैनिकों और विद्रोहियों के बीच खूनी जंग छिड़ी हुई थी। दोनों ओर से हजारों जानें गईं। विद्रोही हजारों की तादात में घने जंगलों डेरा डाले हुए थे, जो छिपकर सैनिकों पर हमला करते थे। इन विद्रोहियों के समूह को ‘द रिवॉल्यूशनरी आर्म फोर्सेज ऑफ कोलम्बिया’(फार्क) नाम से जाना जाता है। फार्क कम्युनिस्ट पार्टी की सशस्त्र शाखा थी। फार्क मार्क्‍सवादी-लेनिन विचारधारा से प्रेरित समूह है। हवाना में नवंबर 2012 से ही शांति समझौते पर बातचीत चल रही थी। इसी साल जून में दोनों पक्ष संघर्ष को खत्म करने पर रजामंद हुए थे।
कौन है फार्क?
यह कोलंबिया का सबसे बड़ा विद्रोही समूह था, जिसमें किसान से लेकर मजदूर शामिल थे। इसकी स्थापना 1964 में हुई थी। ये सरकार की ग्रामीण इलाकों में भेदभाव की नीतियों से खफा थे। सशस्त्र विद्रोही समूह में तकरीबन 7 हजार लड़ाके थे। इन्हें सक्रिय इलाकों में गांववालों का भी सपोर्ट था। फार्क में कुछ शहरी समूह भी थे, लेकिन मुख्य रूप से इसकी पहचान ग्रामीण गोरिल्ला संगठन के तौर पर रही है। इसी के चलते इनकी पहचान मुश्किल होती थी। सैनिकों और फार्क के बीच जंग में सैनिकों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ा। कंबोडिया मीडिया की रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 2002 तक विद्रोहियों की संख्या तकरीबन 20 हजार हो चुकी थी।
जमकर पहुंचाया देश को जान-माल का नुकसान
इनके मुख्य ‘दुश्मन’ कोलंबिया की पुलिस और आर्मी ही थी। विद्रोही लड़ाके पुलिस स्टेशन, सेना की पोस्ट को निशाना बनाते थे।विद्रोही अक्सर तेल पाइपलाइन, पुलिस स्टेशनों, और सरकारी संस्थानों को निशाना बनाकर सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाते थे। फार्क के हमलों में कई बच्चों की भी मौत हुई है। फार्क विद्रोहियों ने फिरौती के लिए हज़ारों लोगों को अगवा भी किया है।

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