नई दिल्ली। सहारा रेगिस्तान दुनिया का सबसे बड़ा गर्म मरुस्थल है। आज से करीब 5,000 से 11,000 साल पहले यह पूरा इलाका हरा-भरा था। आज के मुकाबले तब यहां 10 गुना अधिक बारिश होती थी। यह बात एक नए अध्ययन में सामने आई है। सहारा रेगिस्तान में उस समय शिकारी रहा करते थे। ये शिकारी जीवनयापन के लिए इलाके में पाए जाने वाले जानवरों का शिकार करते थे और यहां उगने वाले पेड़-पौधों पर आश्रित थे। इस शोध में पिछले 6,000 सालों के दौरान सहारा में बारिश के प्रतिमानों और समुद्र की तलहटी का अध्ययन किया गया है। यूनिवर्सिटी ऑफ अरिजोना की जेसिका टी इस रिसर्च की मुख्य शोधकर्ता हैं।
उन्होंने कहा, 'आज की तुलना में सहारा मरुस्थल पर 10 गुना ज्यादा गीला था।' अब सहारा में सालाना 4 इंच से 6 इंच तक बारिश होती है। इससे पहले हुए कुछ शोधों में हालांकि 'ग्रीन सहारा काल' के बारे में पता लगाया जा चुका था, लेकिन यह पहला मौका है कि इस पूरे इलाके में पिछले 25,000 सालों के दौरान होने वाली बारिश का रेकॉर्ड खोजा गया है। पुरातात्विक साक्ष्य बताते हैं कि इंसान इस हरित काल में यहां रहते थे। फिर 1,000 से 8,000 साल पहले मानव यहां से चले गए। बाकी कई शोधों में पता चला कि जब सहारा शुष्क होने लगा, तब यहां रहने वाले लोग दूसरी जगहों पर चले गए। यह भी कहा जा रहा है कि इन अवशेषों को फिलहाल निर्णायक नहीं माना जा सकता है।
जेसिका और उनकी टीम द्वारा किए गए शोध में पाया गया है कि लगभग 8,000 साल पहले सहारा में 1,000 साल लंबा ऐसा काल आया, जब यह और ज्यादा शुष्क होने लगा। जेसिका बताती हैं, 'इसी 1,000 साल की अवधि के कारण शायद वहां से लोगों को निकलना पड़ा। सबसे दिलचस्प यह है कि इस 1,000 साल के शुष्क काल के खत्म होने पर जो लोग यहां लौटकर आए, वे अलग थे। पहले के लोग जहां शिकारी थे, वहीं अब आने वाले लोग पशुपालन करते थे। इस हजार साल के शुष्क काल में हम 2 अलग-अलग संस्कृतियां देखते हैं। हमारे पास जो आंकड़े हैं, वे लोगों के पेशे और जीवनशैली में आए इस बदलाव का कारण जलवायु संबंधी बदलावों से जोड़ते हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि मौजूदा जलवायु मॉडल्स सहारा रेगिस्तान के इस प्राचीन जलवायु के साथ बेहद मेल खाते हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि ये आंकड़े जलवायु परिवर्तन संबंधी अनुमानों को बेहतर बना सकते हैं। प्राचीन समय में सहारा हरा-भरा था, यह जानकारी पहले के शोधों से मिल चुकी थी, लेकिन यहां के कितने हिस्से में कितना पानी मौजूद था, इस बारे में कोई ठोस आंकड़ा मौजूद नहीं था। वैज्ञानिक किसी भी जगह से वातावरण का अतीत जानने के लिए प्राचीन झीलों की तलहटी की जांच कर आंकड़े जुटा सकते हैं, लेकिन सहारा में मौजूद झीलें बहुत पहले ही सूख चुकी थीं और उनकी तलहटी में मौजूद अवशेषों को हवा उड़ाकर ले जा चुकी थी। ऐसे में जेसिका और उनकी टीम ने पश्चिमी अफ्रीका में चार अलग-अलग जगहों पर समुद्रीय तलछटों का अध्ययन किया। इससे ना केवल उन्हें उस काल में सहारा में होने वाली वर्षा का, बल्कि हरित सहारा के इलाके के बारे में भी ठोस आंकड़े मिले। यह शोध सायेंस अडवांसेज नाम की पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
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