
.....एक सच जो आपको नही पता...
कैलाश मानसरोवर अनुदान का दुसरा पहलु..!!
तब दिल्ली में द्वारका नया-नया बस रहा था...द्वारका को NH8 से जोड़ने वाला लिंक रोड अभी नहीं बना था..!! तब गुडगाँव जाने के लिए रेलवे के फाटक को क्रॉस करना पड़ता था..!!
एक दिन सुबह फाटक के ठीक पहले सड़क की बाईं तरफ वाली खाली ज़मीन पर अचानक एक पीर बाबा की मज़ार उग आई थी..!! धीरे-धीरे वह मज़ार बड़ा रूप लेने लगी..!! उसकी दीवारें पक्की हो चली थीं..!! धीरे-धीरे लोग-बाग़ भी वहाँ जमा होने लगे..!! एक दिन एक लाउडस्पीकर भी लग गया.!!
देखते-देखते कुछ महीने बीत गए..!!
फिर अचानक एक दिन देखा कि मज़ार के पास ही हनुमान जी आ पधारे थे..लगा कि शायद पीर बाबा मज़ार में पड़े-पड़े बोर हो जाते होंगे इसलिए साथ देने के लिए हनुमान जी को बुला लिया..!! हनुमान जी पहले तो खुले में पेड़ के नीचे पड़े रहते थे..!!
पर आखिर कब तक ऐसा चलता..बारिश में भींग जाते तो..? उन्हें ज़ुकाम हो जाता तो..? तो जनाब...हनुमान जी के सर पर भी छत आ ही गई..!! एक घंटी भी लटका दी गई जिसे एक आदमी शाम को बजाता था..!! पर उसके अलावा वहां कोई दिखता नहीं था..!! हाँ...सड़क से गुजरने वाली गाड़ियों में बैठे लोग श्रद्धा से सर ज़रूर झुका लेते थे..!!
सब कुछ ऐसे ही चलता रहा..!! लगने लगा था कि कुछ ही महीनों में यह मंदिर और यह मज़ार विशालकाय रूप धारण कर लेंगे..!! और हिन्दू-मुस्लिम एकता की बेहतरीन मिसाल पेश करेंगे..!!
पर यह क्या.!!!
एक सोमवार को जब लोगों ने एक सूबह देखा कि मंदिर और मज़ार दोनों गायब.!! उसकी जगह एक पुलिस चौकी दिखाई दे रही थी जहाँ दो पुलिस वाले गप्पें मार रहे थे..!! कुछ समझ नहीं आया कि आखिर हुआ क्या..? ये रातों-रात ये दोनों स्ट्रक्चर कहाँ चले गए..? ना ही कोई तूफ़ान आया था ना ही कोई सुनामी..!!! तो ये दोनों आखिर गए कहाँ..? ऊपर से मीडिया वालों की कोई हलचल भी नहीं..!!
कौतुहलवश कुछ हिन्दू टहलते हुए नई नवेली पुलिस चौकी तक गए..वहां बैठे कांस्टेबल्स ने ऊन्हे शंका भरी निगाहों से देखा..!! जब उनसे मन की बात पूछी तो उन्होंने पलट कर पूछा - " कैसी मज़ार..? कैसा मंदिर..?"
जब उन्हें भरोसा दिलाया कि वे PRESSTITUTES नहीं हैं.. बल्कि साधारण नागरिक हैं..तब जा के उन्होंने असली बात बताई..!!
बात चौंकाने वाली थी.. पुलिस वालों ने कहा कि हनुमान जी का मंदिर जो बाद में प्रकट हुआ था..वह दरअसल पुलिस वालों ने स्वयं ही बनवाया था..!! पर उद्देश्य मंदिर निर्माण नहीं था..बल्कि उद्देश्य था सरकारी ज़मीन पर उग आई पीर बाबा की अवैध मज़ार को उखाड़ फेंकना..!!
पूछा कि अगर मज़ार अवैध थी तो उसे ऐसे भी हटाया जा सकता था...मंदिर क्यों बनाया..और फिर दोनों को साथ में हटाया..?
पुलिस वालों ने कहा कि अगर सिर्फ मज़ार हटाते..तो सेक्युलर लोग शोर मचाने लगते..!! और फिर प्रेस्टीट्यूट लोग आ जाते अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए..टीवी पे शोर-गुल बढ़ जाता..!! इसलिए हमने हनुमान जी का सहारा लिया..!!
दोनों कंस्ट्रक्शन्स को अवैध बताकर साफ़ कर दिया.!! कोई मीडिया वाला नहीं पहुंचा क्योंकि यहाँ अल्पसंख्यक कम्युनिटी को 'पीड़ित' के रूप में नहीं दर्शाया जा सकता था..!!
तो सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी..!!
यह इंडिया है जनाब... फरजी सेक्युलरों से निपटने के लिए यहाँ क्या-क्या नहीं करना पड़ता..!!
कैलाश मानसरोवर सब्सिडी..हनुमान मंदिर है भाइयों..!!
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