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जानिए :माँ शारदा का वाहन हंस क्यों है - क्या इसका सही कारण...

Image result for जानिए देवी सरस्वती का वाहन हंस क्यों है?
# सरस्वती को विद्या और बुद्धि की देवी माना गया है। जिस तरह भगवान शंकर का वाहन नंदी, विष्णु का गरुड़, कार्तिकेय का मोर, दुर्गा का सिंह और श्रीगणेश का वाहन चूहा है, उसी तरह सरस्वती का वाहन हंस है। देवी सरस्वती का वाहन हंस क्यों है? इस बात का उल्लेख देवी की द्वादश नामावली में मिलता है !
‘ब्रह्मा’ ने किया था अपनी ही पुत्री ‘सरस्वती’ से विवाह
# हिन्दू धर्म के दो ग्रंथों ‘सरस्वती पुराण’ और ‘मत्स्य पुराण’ में सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का अपनी ही बेटी सरस्वती से विवाह करने का प्रसंग है जिसके फलस्वरूप इस धरती के प्रथम मानव ‘मनु’ का जन्म हुआ। लेकिन ब्रह्मा ने अपनी ही पुत्री से विवाह जैसा निन्दनीय काम क्यों किया इसका जवाब जानने के लिए पढ़ते है पुराणों में वर्णित कथा। ‘सरस्वती पुराण’ और ‘मत्स्य पुराण’ में वर्णित कथाओं में कुछ भिन्नता है, इसलिए हम आपको दोनों कथाओं से अवगत करा रहे है !
मत्स्य पुराण में वर्णित कथा  -
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# इसके उलट मत्स्य पुराण के अनुसार ब्रह्मा के पांच सिर थे। कहा जाता है जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो वह इस समस्त ब्रह्मांड में अकेले थे। ऐसे में उन्होंने अपने मुख से सरस्वती, सान्ध्य, ब्राह्मी को उत्पन्न किया।

# ब्रह्मा अपनी ही बनाई हुई रचना, सरवस्ती के प्रति आकर्षित होने लगे और लगातार उन पर अपनी दृष्टि डाले रखते थे। ब्रह्मा की दृष्टि से बचने के लिए सरस्वती चारो दिशाओं में छिपती रहीं लेकिन वह उनसे नहीं बच पाईं।

# इसलिय सरस्वती आकाश में जाकर छिप गईं लेकिन अपने पांचवें सिर से ब्रह्मा ने उन्हें आकाश में भी खोज निकाला और उनसे सृष्टि की रचना में सहयोग करने का निवेदन किया।
# सरस्वती से विवाह करने के पश्चात सर्वप्रथम मनु का जन्म हुआ। ब्रह्मा और सरस्वती की यह संतान मनु को पृथ्वी पर जन्म लेने वाला पहला मानव कहा जाता है। इसके अलावा मनु को वेदों, सनातन धर्म और संस्कृत समेत समस्त भाषाओं का जनक भी कहा जाता है।
# "प्रथमं भारती नाम द्वितीयं च सरस्वती। तृतीयं शारदा देवी चतुर्थं हंसवाहिनी॥
# अर्थात सरस्वती का पहला नाम भारती, दूसरा सरस्वती, तीसरा शारदा और चौथा हंसवाहिनी है। यानी हंस उनका
# सहज ही यह जिज्ञासा होती है कि आखिर हंस सरस्वती का वाहन क्यों है? सबसे पहले तो यह बात समझना होगी कि यहां वाहन का अर्थ यह नहीं है कि देवी उस पर विराजमान होकर आवागमन करती हैं। यह एक संदेश है, जिसे हम आत्मसात कर अपने जीवन को श्रेष्ठïता की ओर ले जा सकते हैं।

# हंस को विवेक का प्रतीक कहा गया है। संस्कृत साहित्य में नीर-क्षीर विवेक का उल्लेख है। इसका अर्थ होता है- दूध का दूध और पानी का पानी करना। यह क्षमता हंस में विद्यमान होती है-
" नीरक्षीरविवेके हंसालस्यं त्वमेव तनुषे चेत्।
भामिनीविलास !!
इसका अर्थ है कि हंस में ऐसा विवेक होता है कि वह दूध और पानी पहचान लेता है।
# श्वेत रंग है पवित्रता और शांति का प्रतीक हंस का रंग शुभ्र (श्वेत) होता है। यह रंग पवित्रता और शांति का प्रतीक है। शिक्षा प्राप्ति के लिए पवित्रता आवश्यक है। पवित्रता से श्रद्धा और एकाग्रता आती है। शिक्षा की परिणति ज्ञान है।
# ज्ञान से हमें सही और गलत या शुद्ध और अशुद्ध की पहचान होती है। यही विवेक कहलाता है। मानव जीवन के विकास के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है, इसलिए सनातन परम्परा में जीवन का पहला चरण शिक्षा प्राप्ति का है, जिसे ब्रह्मïचर्य आश्रम कहा गया है। जो पवित्रता और श्रद्धा से ज्ञान की प्राप्ति करेगा, उसी पर सरस्वती की कृपा होगी।
# सरस्वती की पूजा-उपासना का फल ही हमारे अंत:करण में विवेक के रूप में प्रकाशित होता है। हंस के इस गुण को हम अपनी जिंदगी में अपना लें तो कभी असफल नहीं हो सकते। सच्ची विद्या वही है जिससे आत्मिक शांति प्राप्त हो। सरस्वती का वाहन हंस हमें यही संदेश देता है कि हम पवित्र और श्रद्धावान बन कर ज्ञान प्राप्त करें और अपने जीवन को सफल बनाएं।
# एकनिष्ठ प्रेम का प्रतीक हंस एकनिष्ठ प्रेम का प्रतीक है। शास्त्रों में वर्णित हंस-हंसनी के प्रेम की कथाओं को आज विज्ञान ने भी सहमति दी है। हंस अपना जोड़ा एक ही बार बनाते हैं। यदि उनमें से किसी एक की मौत हो जाती है तो दूसरा उसके प्रेम में अपना जीवन बिता देता है, पर दूसरे को अपना जीवन साथी नहीं बनाता। हमारी परंपरा में भी हंस के इस प्रेम को मनुष्य के लिए आदर्श माना गया है।
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