तलाक! ऐसे शब्द कानों में पड़ते ही कितने चुभते हैं। और सभी इससे दूर हे रहना चाहते हे 'शादी' ज़िंदगी का बहुत बड़ा फैसला होता है। शायद इसलिए भी क्योंकि प्रेम को कई बार दफ़्न करना पड़ता है। आपके प्रेम को घर-परिवार-समाज में जगह मिले, ऐसा ज़रूरी नहीं। तलाक बहुत बड़ा फैसला होता है। शादी से भी बड़ा, शायद इतना बड़ा कि कई लोग चाहकर भी इस फैसले को अपना नहीं पाते। ऐसा फैसला जिसे अपनाया जाता है आज़ादी के लिए, जकड़न और बंदिशों से मुक्ति के लिए पर अक्सर ही यह फैसला अपने साथ एक तरह का बोझ लेकर आता है। तलाक के बाद आज़ाद होना आसान नहीं, लोग अक्सर बोझिल महसूस करते हैं।और ये बहुत हे दुःखदायीं होता है

तलाक महिलाओं का होता है क्योंकि महिलाओं को तलाक जैसे कठिन फैसले लेने में थोड़ा वक्त लगता है। पुरुष अगर अपनी स्त्री के साथ न रहना चाहे तो उसका घर-परिवार भी उसे ज्यादा समय तक विवश नहीं कर सकता। उसे तलाक जैसे कानून की खास ज़रूरत नहीं। वो वैसे भी अपना रास्ता अगल कर लेगा। कुछ धर्मों में तो तीन बार तलाक कहकर ही मुक्ति पा लेगा। महिलाओं के लिए तलाक सबसे अधिक भारी-भरकम और बोझिल शब्द है। बोझिल इसलिए कि तमाम कानूनी दस्तावेजों के बावजूद समाज महिला को आगे बढ़कर तलाक लेने की आज़ादी कम ही दे पाता है।

ऐसा वो तलाकशुदा औरत नहीं भी सोचती है तो लोग सोचने लगते हैं। कई बार औरतें मज़बूत हो जाती हैं और दृढ़ निश्चय कर लेती हैं कि वो अकेली रहकर अपना मुकाम हासिल करेंगी। पर जिन लोगों से उस औरत ने आज तक एक गिलास पानी भी नहीं मांगा उन्हें भी चिंता होने लगती है कि ऐसे अकेली कबतक बोझ बनकर बैठी रहेगी। इसको भी कहीं न कहीं 'सेटल' तो करना ही है। 'सेटलमेंट' के नाम पर शादी और बच्चों से ऊपर न सोच पाने वाले समाज में अगर औरत ने सोच ही लिया कि वो भी एक नयी शुरूआत करेगी तो सब जानते हैं

औरतें तलाक के बाद जूठन हो जाती हैं और आदमी कुंवारे रहते हैं। जब सामाजिक रवायतों की बातें की जाती हैं तो कानूनी किताबों को संविधान की चौख़ट पर दफ़्न कर दिया जाता है। पुरुष हमेशा हर बार नयी शुरूआत कर सकता है क्योंकि तलाक सिर्फ़ महिलाओं का होता है।
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